Poem character

चरित्र


एक चरित्र बड़ा सुहाना था, कुछ तो जाना पहचाना था 

कुछ था उसके दिल के अंदर जो मुझको बतलाना था

एक बात चली कुछ बात कही उसने मुझसे अनजाने में 

वो प्रेम भरा प्रस्ताव ही था, पर डरता था बतलाने से

चलता था मेरे साथ मगर डरता था हाथ बढ़ाने से

रेखाएँ देखने का बहाना कर, हाथों में लेकर हाथ मेरा 

उस मोड़ के आख़िर छोर तलक जिस मोड़ पे मुझको जाना था

वहाँ छोड़ के मुझको शायद वो कुछ बतलाना चाहता था

पर ज़ुबान तलक वो बात कहीं, अक्सर आकर रूक जाती थी

जाने क्या थी वो मजबूरी जो उसको समझ में आयी थी 

मैं तो थी अंजानी मगर एक बात उसने बतलाई थी,

संजोग नहीं जब क़िस्मत का, क्यूँ आगे हाथ बाड़ाऊ मैं,

जिस रिश्ते का अंजाम नहीं उसे क्यूँ निभाऊँ मैं,

चलो जो भी हुआ अब जाने दो, उसने मुझसे ये बात कही,

पर आज भी उसकी आँखों में वो प्यार नज़र क्यूँ आता है

वो जीतना रहता दूर मगर मुझको ना भूल वो पाता है,

ज़ुबान से चाहे जो कहे आँखो से सब कह जाता है,

वो चरित्र आज अनजान नहीं, जो कल कुछ जाना पहचाना था,

वो आज भी उसके दिल में है जो मुझको बतलाना था।


- नेहा सजवाण

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