Free school under the bridge student
बच्चों के जीवन में भरते उम्मीदों के रंग
'फ्री स्कूल अंडर दी ब्रिज' छात्रों के जीवन में रंगों के रुप में उम्मीद की एक नई किरण आयी है। मैट्रो के ब्रिज के नीचे लगने वाला यह स्कूल यमुना बैंक मैट्रो स्टेशन के पास जहां आस पास की झुग्गियों में रहने वाले मजदूरों केे बच्चे पढऩे के लिए आते है। लेकिन अब यहां पढऩे वाले बच्चों को पढऩे के लिए स्कूल जैसा माहौल पैदा करने की कोशिश की गई है। मैट्रो की सफेद दीवार पर अब नीले रंग में रंग चुकी है। जिसपर ब्लैक बोर्ड के आसपास लाल, हरा, संतरी जैसे कई रंगों से फूल, बच्चे, पेड़, सीढी के चित्रों के साथ क.ख.ग.घ जैसे कई अक्षर रंगे गए है। जो बच्चों में पढ़ाई को लेकर एक अलग उत्साह पैदा कर रहा है। दिल्ली स्ट्रीट आर्ट की ओर से इस स्कूल को एक नया रुप दिया गया है। वहीं एक निजी कंपनी की ओर से बच्चों को संतरी कलर की टी-शर्ट भी दी गई है, जिसपर स्कूल का नाम लिखा है।
किताबी ज्ञान से परे है स्कूल
स्कूल में पढऩे वाली अमृता कहती है कि यह पढऩे में काफी मजा आता है। यहां सर सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं देते बल्कि हर चीज के बारे में अच्छी तरह से समझाते हैं। अमृता कहती है कि मैं पिछले दो साल से यहां रोज पढऩे के लिए आ रही हूं तीनों टीचर हमें यहां सभी विषय बहुत अच्छे से पढ़ाते हैं। स्कूल शुरू होने से पहले यहां प्रार्थना और एक्सर्साइज भी करायी जाती है। इसके साथ ही जो बच्चे स्कूल में नहीं पढ़ते उनका स्कूल में दाखिला भी यहां पढ़ाने वाले टीचरों कराते हैं।
गरीब बच्चों के लिए शिक्षा का सहारा
यमुना बैंक के आसपास की झुग्गी-झोपडिय़ों और रेल की पटरी के किनारे रहने वाले गरीब मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए यह स्कूल एक बड़ा सहारा है। दिल्ली में काम की तलाश में दूसरे शहरों से यहां पहुंचे लोग इस क्षेत्र के आसपास रहते हैं। स्थायी पहचान न होने के चलते बच्चों का स्कूल में दाखिले को लेकर दिक्कत आती है, जिसका खामियाजा बच्चों को उठाना पढ़ता है। लेकिन इस स्कूल के चलते यहां रहने वाले बच्चों को शिक्षा हासिल करने का बेहतरीन अवसर मिल रहा है।
दो बच्चों से की शुरुआत अब 250 बच्चे
फ्री स्कूल अंडर दी ब्रिज के संस्थापक राजेश कुमार शर्मा बताते हैं कि एक या दो बच्चों के साथ मैने इस स्कूल की शुरूआत की थी। मुझे नहीं पता था कि एक दिन ऐसा आयेगा जब इतनी संख्या में मेरे पास बच्चे पढऩे के लिए पहुंचेगे। 2006 में मैं जब यमुना बैंक के पास मैंट्रो को देखने के लिए आया तब मैने देखा की यहां बच्चे खेल रहे हैं इधर उधर घूमकर अपना भविष्य खराब कर रहे हैं। यहां लोगों से बातचीत करने पर बच्चों के लिए कुछ करने की सोची और पेड़ के नीचे महज दो बच्चों से इस स्कूल की शुरुआत की। लेकिन कुछ ही समय में
यह संख्या 100 के पार पहुंच गई।
पढऩे वाले बच्चों का स्कूल में होता है दाखिला
स्कूल में काफी संख्या में बच्चों के आने के बाद मैने नगर निगम स्कूल के एक प्रिंसिपल से बच्चों के दाखिले की बात कहीं जब उन्होंने पुछा कि आपके पास कितने बच्चे पढ़ते हैं तो मैने कहा 150 तब वह थोड़े हैरान हुए उन्होंने कहा कि मुझे देखना है। इसके बाद वह यहां आये और बच्चों की लगन को देख उनका दाखिला स्कूल में कराया। राजेश कहते हैं कि मेरे पढ़ाये हुए काफी बच्चे अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और वह बच्चे आज यहां पढ़ाने के लिए भी आते हैं।
सुबह लड़के और दिन में पड़ती है लड़कियां
राजेश ने बताया कि इस स्कूल में इस वक्त पहली क्लास से 10वीं तक में पढऩे वाले 250 बच्चे हैं, जिन्हें पढ़ाने के लिए दो शिक्षकों के साथ कुछ लोग भी यहां आते हैं। पहले यहां सिर्फ लड़के पढ़ते थे लेकिन अब लड़कियां भी पढऩे आती है। सुबह 10 बजे से लड़के और 2 बजे से लड़कियों को पढ़ाया जाता है। बच्चों को पढ़ाने वाले लक्ष्मी चंद्रा बताते हैं कि वह यमुना पार रहते हैं जहां वह बच्चों को ट्यूशन देते है। मैं वहां बच्चों से पैसे लेकर ट्यूशन पढ़ाता हूं और यहां जरुरतमंद बच्चों को फ्री में पढ़ाता हूं। वाले दो-तीन टीचर आते हैं जो इन बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे नहीं लेते हैं।
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