Beautiful journey of uttarakhand / chopta /tungnath / chandrashila
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में चोपता तुंगनाथ धार्मिक स्थल होने के साथ ही आस पास फैली सुंदरता के लिए भी प्रचलित है। भगवान के दर्शन करने के साथ ट्रेकिंग करने वाले लोगो के लिए यह बेहतरीन जगह है। दिल्ली से ऋषिकेश होते हुए रुद्रप्रयाग ओर फिर ऊखीमठ के रास्ते से चोपता के लिए एक रोड जाती है। उखीमठ से 40 किलोमीटर की दूरी पर चोपता स्थित है। हरी-भरी मुलायम घास से ढका चोपता एक बेहद ही सुंदर और खूबसूरत हिल स्टेशन है। यहाँ चारों ओर फैली सुंदरता और शांति एक गहरे सुकून का अहसास कराती है।
मिनी स्विजरलैंड
बुग्याल (मुलायम और हरी-भरी घास से ढके पहाड़) के कारण इसे गढ़वाल का मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहा गया जाता है। गर्मियों में हरी घास से ढके यह पहाड सर्दियों में बर्फ़ की सफ़ेद चादर से ढक जाते हैं, जिसकी खूबसूरती को देख आपकी आंखें मानो तृप्त हो गई हो। नीचे हरी पहाड़ियां और ऊपर की और हिमालय की सफेद चोटी, आपको एक भूले-बिसरे सुकून का एहसास कराती हैं।
तुंगनाथ
चोपता से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तुंगनाथ का मंदिर, जिसे पंच केदार में से एक केदार है। तुंगनाथ की खड़ी चढ़ाई थका जरूर सकती है लेकिन आसपास के मनमोहक दृश्य उस थकान को ज्यादा देर तक टिकने नहीं देते। तुंगनाथ के लिए जाने वाले इस रास्ते पर थोड़ी थोड़ी दूरी पर बने घरों में चाय के स्टॉल हैं जहां कुछ देर आराम कर इस यात्रा को दोबारा शुरू कर सकते हैं। पंचकेदार में से एक इस मंदिर में भगवान शिव की भुजा और छाती की पूजा की जाती है। इस मंदिर में जमीन से उत्पन्न एक शिला है जिस पर जल चढ़ा कर उसकी पूजा अर्चना की जाती है इसी मंदिर में माता पार्वती का भी एक स्थान है। इसके साथ ही यहां भैरव और नंदी के दर्शन भी किए जा सकते हैं। केदारनाथ की तरह ही यह मंदिर भी वर्ष में कुछ समय के लिए खुलता है।
ट्रेकिंग करने वालो के लिए बेस्ट
नवंबर से मार्च तक का महीना यहां पर भारी बर्फबारी होती है जिसके कारण मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। लेकिन ट्रैकिंग करने वाले लोगों के लिए यह समय भी अच्छा है। इस समय चारों ओर बर्फ से ढकी पहाड़ियों को देख आप इस सौंदर्य में खो जाएँगे। तुंगनाथ का यह मंदिर समुंद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। प्रचलित कथाओं के आधार पर यह माना जाता है कि जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के हाथों काफ़ी बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ, तो भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गये। भगवान शिव को मनाने लिए पांडवों ने इस मन्दिर का निर्माण कराया। यह मन्दिर 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना है।
चंद्रशिला पर भगवान राम ने की थी तपस्या
तुंगनाथ से ऊपर की ओर रास्ता जाता है चंद्रशिला के लिए। तुंगनाथ के लिए रास्ता जितना अच्छा है वहीं चंद्रशिला के लिए जाने वाला रास्ता उतना ही टूटा और संक्रिला है। लेकिन इस रास्ते में ऐसे मनमोहन नज़ारे दिखाई देंगे, जो किसी सपने से कम नही। 14 हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर में गंगा माँ की पूजा होती है। इतनी ऊंचाई पर स्थित इस छोटे से मंदिर की किंवदंती है कि रावण को परास्त करने के बाद प्रभु श्री राम ने इसी शिला पर तपस्या की थी।
नंदादेवी और चौखम्बा शिखर का नजारा
पहाड़ की एक तरफ से बाहर की ओर निकली तिकोनी, संकरी चट्टान जिस तक पहुंचने के लिए पत्थर का एकमात्र रास्ता इतना संकरा है। छोटी सी शिला पर बना मंदिर भी बहुत छोटा सा है। मंदिर के पीछे की ओर थोड़ी सी जगह और है। वहां खड़े होकर जब अपने चारों ओर देखेंगे तो हर तरफ शिखर ही शिखर नज़र आएंगे। जिन चोटियों को चोपता में गर्दन पीछे करके देखा होगा वहां आप उनसे भी ऊंचे होंगे। त्रिशूल, नंदादेवी, चौखम्बा इत्यादि सभी शिखर वहां से दिखेंगे।
कैसे पहुंचे
चमोली में दो चोपता हैं इसलिए रुद्रप्रयाग से बस या जीप बुक करें तो चोपता तुंगनाथ के लिए ले। रुद्रप्रयाग से चोपता एक गांव हैं जिसके लिए बस चलती है। इसलिए चोपता तुंगनाथ स्थान इस स्थान पर जाने के लिए कहें।
मिनी स्विजरलैंड
बुग्याल (मुलायम और हरी-भरी घास से ढके पहाड़) के कारण इसे गढ़वाल का मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहा गया जाता है। गर्मियों में हरी घास से ढके यह पहाड सर्दियों में बर्फ़ की सफ़ेद चादर से ढक जाते हैं, जिसकी खूबसूरती को देख आपकी आंखें मानो तृप्त हो गई हो। नीचे हरी पहाड़ियां और ऊपर की और हिमालय की सफेद चोटी, आपको एक भूले-बिसरे सुकून का एहसास कराती हैं।
तुंगनाथ
चोपता से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तुंगनाथ का मंदिर, जिसे पंच केदार में से एक केदार है। तुंगनाथ की खड़ी चढ़ाई थका जरूर सकती है लेकिन आसपास के मनमोहक दृश्य उस थकान को ज्यादा देर तक टिकने नहीं देते। तुंगनाथ के लिए जाने वाले इस रास्ते पर थोड़ी थोड़ी दूरी पर बने घरों में चाय के स्टॉल हैं जहां कुछ देर आराम कर इस यात्रा को दोबारा शुरू कर सकते हैं। पंचकेदार में से एक इस मंदिर में भगवान शिव की भुजा और छाती की पूजा की जाती है। इस मंदिर में जमीन से उत्पन्न एक शिला है जिस पर जल चढ़ा कर उसकी पूजा अर्चना की जाती है इसी मंदिर में माता पार्वती का भी एक स्थान है। इसके साथ ही यहां भैरव और नंदी के दर्शन भी किए जा सकते हैं। केदारनाथ की तरह ही यह मंदिर भी वर्ष में कुछ समय के लिए खुलता है।
ट्रेकिंग करने वालो के लिए बेस्ट
नवंबर से मार्च तक का महीना यहां पर भारी बर्फबारी होती है जिसके कारण मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। लेकिन ट्रैकिंग करने वाले लोगों के लिए यह समय भी अच्छा है। इस समय चारों ओर बर्फ से ढकी पहाड़ियों को देख आप इस सौंदर्य में खो जाएँगे। तुंगनाथ का यह मंदिर समुंद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। प्रचलित कथाओं के आधार पर यह माना जाता है कि जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के हाथों काफ़ी बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ, तो भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गये। भगवान शिव को मनाने लिए पांडवों ने इस मन्दिर का निर्माण कराया। यह मन्दिर 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना है।
चंद्रशिला पर भगवान राम ने की थी तपस्या
तुंगनाथ से ऊपर की ओर रास्ता जाता है चंद्रशिला के लिए। तुंगनाथ के लिए रास्ता जितना अच्छा है वहीं चंद्रशिला के लिए जाने वाला रास्ता उतना ही टूटा और संक्रिला है। लेकिन इस रास्ते में ऐसे मनमोहन नज़ारे दिखाई देंगे, जो किसी सपने से कम नही। 14 हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर में गंगा माँ की पूजा होती है। इतनी ऊंचाई पर स्थित इस छोटे से मंदिर की किंवदंती है कि रावण को परास्त करने के बाद प्रभु श्री राम ने इसी शिला पर तपस्या की थी।
नंदादेवी और चौखम्बा शिखर का नजारा
पहाड़ की एक तरफ से बाहर की ओर निकली तिकोनी, संकरी चट्टान जिस तक पहुंचने के लिए पत्थर का एकमात्र रास्ता इतना संकरा है। छोटी सी शिला पर बना मंदिर भी बहुत छोटा सा है। मंदिर के पीछे की ओर थोड़ी सी जगह और है। वहां खड़े होकर जब अपने चारों ओर देखेंगे तो हर तरफ शिखर ही शिखर नज़र आएंगे। जिन चोटियों को चोपता में गर्दन पीछे करके देखा होगा वहां आप उनसे भी ऊंचे होंगे। त्रिशूल, नंदादेवी, चौखम्बा इत्यादि सभी शिखर वहां से दिखेंगे।
कैसे पहुंचे
चमोली में दो चोपता हैं इसलिए रुद्रप्रयाग से बस या जीप बुक करें तो चोपता तुंगनाथ के लिए ले। रुद्रप्रयाग से चोपता एक गांव हैं जिसके लिए बस चलती है। इसलिए चोपता तुंगनाथ स्थान इस स्थान पर जाने के लिए कहें।
- दिल्ली के काश्मीरी गेट से रात्रि 9:30 बजे ऊखीमठ की सीधी बस सेवा है।
- यह नही तो आप दिल्ली से ऋषिकेश ओर वाला से रुद्रप्रयाग ओर फिर ऊखीमठ के लिए बस ले सकते हैं
- जिसके बाद उखीमठ से चोपता के लिए जीप मिल जाएगी।
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