Kavita, ek Saans bhar ki aas
एक साँस भर की आस सिर्फ़ साँस भर की तो आस थी , तेरे और मेरे एक होने की पर एक तूफ़ान उस आस को भी ले चला आस कुछ वैसी ही जैसे समंदर के बीच खड़ी एक नाव को किनारे से मिलने की होती है , जैसे दूर बैठे भँवरे को डाली पर लटकते फूलों के खिलने की आस रहती है , ऐसी ही आस मेरे मन में भी जागी थी , जब तुमने मेरे हाथों को थामा था , जब घंटों तक बिना कुछ बोले तुम मेरे चेहरे में कुछ तलाशते थे , और मेरे देखते ही मुस्कुराकर अपनी नज़रों को मेरे चेहरे से हटा लेते थे , वो आस जब टूटी , तो बहुत कुछ था मेरे अंदर जो उसके साथ टूटा था , उस नाव और उस भँवरे की तड़प को मैंने भी महसूस किया था उस दिन , जब छोड़ कर मेरा हाथ तुमने , अपना रास्ता बदल दिया था , बदल दी थी तुमने अपनी सभी राहें जो मुझ तक आती थीं , वो पल मेरे लिए आसान नहीं था , एक सच होता हुआ सपना था , जो अचानक टूट गया था , पर उस टूटे हुए सपने के दर्...